हनुमान स्वरूप धारण की परंपरा पाकिस्तान से पानीपत का सफर लैय्या बिरादरी की देन, अंग्रेजों से जुड़ा है इतिहास

Estimated read time 1 min read

पानीपत, पाकिस्तान के लैय्या जिले में 90 साल से पहले शुरू हुई हनुमान स्वरूप धारण करने की परंपरा पानीपत में आज भी बरकरार है। देश के बंटवारे के बाद पाकिस्तान से पानीपत आई हनुमान स्वरूप धारण करने की परंपरा आज भी लैय्या बिरादरी के प्रयासों से कायम है। स्वरूप धारण करने के पीछे उनका उद्देश्य पवन-पुत्र हनुमान के आदर्शों का प्रचार-प्रसार कर समाज में फैली कुरीतियाें को दूर करना है। इस समाज में हनुमान स्वरूप को सम्मान की नजर से देखा जाता है। यही वजह है कि इस दौरान कठिन नियमाें का पालन करने की शर्त भी लोगों को हिला नहीं पाती। लैय्या बिरादरी के अध्यक्ष गजेंद्र सलूजा जी ने हमें बताया कि पानीपत में 2000 से ज्यादा लोग ब्रह्मचर्य जैसे कठोर नियमाें का पालन करते हुए हनुमान स्वरूप बनकर मंदिराें में बैठे हैं।

हनुमान स्वरूप बनने का क्या है नियम-

हनुमान स्वरूप दशहरा से ठीक 40 दिन पहले धारण किया जाता है।पानीपत में बरसों से चली आ रही हनुमान स्वरूप धारण करने की परंपरा के 40 दिन व्रत की प्रक्रिया 14 सितम्बर 2023 से शुरू हो चुकी है। इस दौरान ब्रह्मचर्य का सख्ती से पालन, जमीन या लकड़ी के तख्त पर सोना, 24 घंटे में एक बार अन्न ग्रहण कराना, नंगे पैर रहना, लाल लंगोट कसने पर ध्यान दिया जाता है। इस दौरान मंदिर ही इन हनुमान स्वरूपों का ठिकाना होता है। अष्टमी से लेकर दशहरे के अगले दिन भरत मिलाप तक नगर परिक्रमा का दौर चलता है। इस दौरान हनुमान स्वरूप ढोल नगाड़ों के साथ भक्तों के घर जाते हैं। भक्त अपनी पिछली मन्नत पूरी होने पर उन्हें घर पर आमंत्रित कर उनका खूब सम्मान करते हैं। इन चार दिनाें में हनुमान स्वरूप पूरी तरह से अन्न का भी त्याग कर देते हैं। दशहरे से ठीक दो दिन बाद 26 अकटूबर 2023 को हरिद्वार पहुंचकर गंगा किनारे हवन-यज्ञ के साथ इसका समापन हो जाएगा।

क्या है मान्यता-

बताया जाता है कि आजादी से पहले पाकिस्तान में सरहंद के पास मुस्लिम समाज के कहने पर अंग्रेज अधिकारियों ने दशहरा पर्व का अवकाश बंद कर दिया था। इसको लेकर हिदू समाज इकट्ठा होकर अंग्रेज अधिकारियों से मिला। उस समय अंग्रेज अधिकारी ने कहा कि हनुमान ने 400 योजन समुंद्र लांघा था। यदि तुम सरहंद के दरिया को पार करके दिखा दो, तो दशहरे का अवकाश मिलेगा। उस समय एक सिद्ध पुरुष ने इस चैलेंज को स्वीकार कर लिया। उन्होंने इसके लिए एक व्यक्ति को तैयार किया। उसे बलिदान के लिए कहा गया। उस व्यक्ति को सिंदूर लगाया गया। चालिस दिन के व्रत करवाए गए। सरहंद दरिया को उस व्यक्ति ने उड़कर पार किया। दूसरे किनारे पर जाने के बाद जब वह वापस लौटा तो उसके लिए शैय्या तैयार थी। शैय्या पर पहुंचने के बाद उसने प्राण त्याग दिए। इसके बाद अंग्रेज अधिकारी ने दशहरा की छुट्टी देना शुरू कर दिया। उसी समय से हनुमान स्वरूप बनने के परंपरा शुरु हुई।

एक परिवार पाकिस्तान से पानीपत लाया था स्वरूप-

पाकिस्तान में इस परंपरा की शुरूआत करने वालाें में से एक भक्त मूलचंद मिगलानी ने 14 वर्ष की आयु में हनुमान स्वरूप धारण किया था। मृत्यु तक वो इसे निभाते रहे। अपने पिता के समय में ही उनके बेटे जीवन प्रकाश मिगलानी ने परिवार की परंपरा को आगे ले जाने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली। जीवन प्रकाश पिछले 35 साल से पूरी शुद्धि के साथ इसे निभाते चले आ रहे हैं।

स्वरूप धारण करने वालों की संख्या 2000 के पार-
महावीर बाजार स्थित श्री हनुमान मंदिर में 40 दिन के व्रत के साथ हनुमान स्वरूप धारण कर बैठे जीवन प्रकाश मिगलानी जी ने बताया कि उनका परिवार पाकिस्तान से आया था। 1947 में देश का बंटवारा होने के बाद पानीपत में सिर्फ भक्त मूलचंद मिगलानी और उनके मित्र दुलीचंद जी हनुमान स्वरूप धारण करते थे।मगर बाद में धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ती चली गई। पानीपत में अब इनकी संख्या बढ़कर 2000 हो चुकी है। उन्हाेंने बताया कि हनुमान स्वरूप धारण करने के पीछे मकसद हनुमान के आदर्शों का प्रचार-प्रसार कर समाज में फैली सामाजिक कुरीतियों को दूर करना है। वर्तमान में भक्त मूलचंद मिगलानी जी के दोनों पुत्र जीवन प्रकाश मिगलानी जी व श्याम मुरारी मिगलानी जी हनुमान स्वरूप धारण करते हैं।

0Shares

You May Also Like

More From Author

+ There are no comments

Add yours