नई दिल्ली, विश्व हिंदी परिषद द्वारा 25-26 जुलाई 2024 को एनडीएमसी कन्वेंशन सेंटर, नई दिल्ली में दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसका विषय “युग पुरुष श्री अरविंद: हिंदी भाषा और विकसित भारत” रहा। इस सम्मेलन की शुरुआत श्री प्रेम रावत जी के शांति संदेश (वीडियो) से हुई। वीडियो के माध्यम से उन्होंने अपने विचारों को प्रस्तुत किया। इसके बाद वंदे मातरम के साथ कार्यक्रम को आगे बढ़ाया गया।
सम्मेलन की संयोजिका, प्रो. संध्या वात्स्यानन ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए विश्व हिंदी परिषद की भूमिका को स्पष्ट किया और श्री अरविंद के संघर्ष, दर्शन और जीवन यात्रा का परिचय दिया। इस सत्र की अध्यक्षता प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित, पूर्व विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय एवं श्री चिंतामणि महाराज, माननीय सांसद, लोक सभा ने की।
मुख्य वक्ता डॉ. अर्पणा राय ने श्री अरविंद के जीवन, महत्वपूर्ण ग्रंथों, आश्रम और साहित्य के बारे में विस्तार से बताया। दीक्षित जी ने श्री अरविन्द के शरीर से परे चेतना, विकासवादी दृष्टिकोण के बारे में विस्तारपूर्वक चर्चा की। माननीय सांसद जी ने भी अपने गुरु के प्रति श्रद्धा को संजोये रखने पर बल दिया। आरम्भ सत्र के अंत में श्री देवी प्रसाद मिश्र, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विश्व हिंदी परिषद, ने भारत को जानने के लिए महर्षि अरविंद के विचारों को जानने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा, “अंग्रेज गए, अंग्रेजी जाए, भारतीय भाषाओं का शासन आए” और हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार के लिए विश्व हिंदी परिषद के योगदान का उल्लेख किया।
उद्घाटन सत्र की शुरुआत श्री विपिन कुमार, महासचिव विश्व हिंदी परिषद ने अतिथियों का संक्षिप्त परिचय और स्वागत भाषण से की और महृषि अरविन्द के ग्रंथों और भारतीयता को एक दूसरे का पूरक बताते हुए हिंदी भाषा को संपूर्ण भारत को जोड़ने वाली सबसे महत्वपूर्ण कड़ी बताया। उन्होंने इस सत्र की शुरुआत विशिष्ट अतिथियों के स्वागत से की जिनमें श्री आर. के. सिन्हा, पूर्व सांसद और उद्योगपति, और श्री रामचंद्र जांगड़ा, राज्यसभा सांसद, शामिल थे।
प्रो. विपिन कुमार ने आगे कहा “यह अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन महर्षि अरविंद के विचारों और हिंदी भाषा के महत्व को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने का एक अनूठा प्रयास है। जैसा कि श्रीमद्भगवद्गीता में कहा गया है, ‘विद्या विनय संपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि। शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः॥’ अर्थात विद्या और विनय से सम्पन्न व्यक्ति सभी को समान दृष्टि से देखते हैं। इसी भावना को समर्पित इस सम्मेलन ने हिंदी भाषा प्रेमियों को एकजुट किया है। हमें गर्व है कि हमने इस मंच के माध्यम से हिंदी को एक सशक्त और समृद्ध भाषा के रूप में प्रतिष्ठित किया है, जो संपूर्ण भारत को एकसूत्र में पिरोती है।”
श्री आर. के. सिन्हा ने हिंदी भाषा की महत्ता पर जोर देते हुए कहा कि यदि व्यापार के क्षेत्र में आगे बढ़ना है, तो हिंदी भाषा की शब्दावली का स्पष्ट ज्ञान आवश्यक है। श्री के. सी. त्यागी, राष्ट्रीय प्रधान महासचिव, जदयू ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी के प्रचार-प्रसार के प्रयासों के लिए पूर्व विदेश मंत्री स्व सुषमा स्वराज जी के योगदान की सराहना की। इसके बाद श्री पी. सी. टंडन, पूर्व विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, वरिष्ठ पत्रकार श्री अमन चोपड़ा, श्री जयप्रकाश द्विवेदी, और अन्य गणमाननीय अतिथियों को सम्मानित किया गया। माननीय केंद्रीय राज्य मंत्री, पंचायती, मतस्य पालन एवं डेयरी, प्रोफेसर सत्यपाल सिंह बघैल ने हिंदी के ऐतिहासिक प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए बताया कि नवजात शिशु को अंग्रेजी के बजाय हिंदी में शिक्षा दी जानी चाहिए।
कार्यक्रम के पहले दिन का समापन विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों और कवि सम्मेलन के साथ हुआ। कत्थक नृत्य प्रस्तुति के बाद, राहुल कुमार रजत और अन्य कवियों ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
दूसरे दिन के पहले सत्र में प्रमुख अतिथियों में रामकृष्ण मिशन आश्रम के सचिव स्वामी सर्वलोकानंद, विश्व हिंदी परिषद के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. विपिन कुमार, एनडीएमसी के चीफ इंजीनियर प्रो. सुदर्शन कुमार, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक रवि कुमार अय्यर, दिल्ली विश्वविद्यालय के डीन ऑफ़ कॉलेजेस प्रो. बलराम पाणी, त्रिनिदाद और टोबैगो गणराज्य के राजदूत डॉ. रोजर गोपाल शामिल थे।
स्वामी सर्वलोकानंद ने हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार की आवश्यकता पर बल दिया और अपने जीवन में हिंदी को अपनाने के अनुभव साझा किए। राजदूत रोजर गोपाल ने बताया कि टोबैगो में हिंदी का प्रभाव कैसे बढ़ रहा है और वहाँ के विद्यालयों में हिंदी में पाठ पढ़ाए जाते हैं। उन्होंने भाषा और संस्कृति के आधार पर टोबैगो को उन्होंने दूसरे भारत की संज्ञा दी। प्रो. सुदर्शन कुमार ने कारगिल विजय दिवस पर शुभकामनाएं देते हुए हिंदी के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने महृषि अरविन्द के दार्शनिक चेतना का महत्व रेखांकित करते हुए भारत की प्रतिष्ठा एवं हिंदी भाषा के अधिकाधिक प्रयोग के लिए वहां उपस्तिथ सभी प्रतिभागीओं को संकल्बद्ध करवाया। प्रो. कुमुद शर्मा, अध्यक्ष, हिंदी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, प्रो. हर्षबाला, उप प्राचार्या, आईपी महविद्यालय, डॉ. दीनदयाल, जेडीएम महाविद्यालय, एवं डॉ. प्रतिभा राणा, श्रद्धानन्द महाविद्यालय ने भी महृषि अरविन्द और राष्ट्रीय चेतना विषय पर अपने विचार प्रस्तुत किये।
अभिनंदन एवं सम्मान सत्र में मुख्य अतिथि मिज़ोरम के राज्यपाल श्री कंभमपाठी हरी बाबू, वरिष्ठ संघ प्रचारक श्री रवि कुमार अय्यर, पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं वरिष्ठ सांसद श्री फग्गन सिंह कुलस्ते, राष्ट्रीय अध्यक्ष विश्व हिंदी परिषद्, पदमश्री पद्मभूषण आचार्य यार्लगड्डा लक्ष्मी प्रसाद, सांसद श्रीमति कमलेश सिंह जागड़े, और अन्य प्रमुख वक्ताओं ने अपने विचार प्रस्तुत किए। निदेशक, एनसीईएआरटी श्री दिनेश प्रसाद सकलानी ने मातृभाषा के महत्व और हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए उठाए गए कदमों की चर्चा की।
राज्यपाल श्री कंभमपाठी हरी बाबू ने हिंदी प्रेमियों, चिंतकों, कवियों और विचारकों के निरंतर प्रयासों की सराहना की और महर्षि अरविंद के व्यक्तित्व से प्रेरणा लेने का आग्रह किया। इस दौरान कई पुस्तकों का विमोचन और प्रमुख अतिथियों को गणेश शंकर विद्यार्थी और राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर सम्मान भी दिया गया। प्रो. पी. सी. टंडन को राष्ट्रीय शैक्षणिक प्रकोष्ठ के संयोजक एवं प्रो. संध्या वात्स्यायन को राष्ट्रीय शैक्षणिक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष के रूप में मनोनीत किया गया।
सम्मेलन के समापन सत्र में सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र, स्मारिका एवं स्मृति चिन्ह वितरित किए गए और ‘भारत माता की जय’ के नारों के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। देश-विदेश से इस सम्मलेन में 250 से अधिक शोधपत्र प्राप्त हुए जिनमे से 21 शोधपत्रों को सर्वश्रेष्ठ घोषित किया गया।
इस सम्मेलन ने हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भविष्य में भी ऐसे आयोजनों की आवश्यकता को रेखांकित किया। कार्यक्रम की संयोजक प्रो. संध्या वात्स्यायन इस सफल सम्मलेन का श्रेय विश्व हिंदी परिषद् के राष्ट्रीय महासचिव प्रो. विपिन कुमार को दिया जिन्होंने इस सम्मलेन को सफल बनाने के लिए अप्रतिम योगदान दिया।
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