तनकी दुति स्याम सरोरुह लोचन कंज की मंजुलताई हरें।
अति सुंदर सोहत धूरि भरे छबि भूरि अनंग की दूरि धेरै॥
दमकै दूँतियाँ दुति दामिनि ज्यौं किलकै कल बालबिनोद करें।
अवधेस के बालक चारि सदा तुलसी-मन-मंदिर में बिहरें॥
उनके शरीर की आभा नीलकमल के समान है, तथा नेत्र कमल की शोभा को हरते हैं। धूलि से भरे होने पर भी वे बड़े सुन्दर जान पड़ते हैं और कामदेव की महती छबि को भी दूर कर देते हैं। उनके नन्हे-नन्हे दाँत बिजली की चमक के समान चमकते हैं और वे किलक-किलक कर मनोहर बाललीलाएँ करते हैं। अयोध्यापति महाराज दशरथ के वे चारों बालक तुलसीदास के मन-मन्दिर में सदैव विहार करें।
पौष मास, शुक्ल पक्ष, षष्ठी तिथि, विक्रमी संवत् २०८०
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