भारतीय जनसंघ की राष्ट्रवाद की परिकल्पना से उपजी है भारतीय जनता पार्टी

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देश के एक राजनीतिक दल से कितनी आशा की जानी चाहिए? एक राजनीतिक दल संकट के दौर में देश और देश की जनता के लिए कितनी अहम भूमिका निभाता है? इन सवालों के जवाब तलाशने पर पता चलता है कि जनता हर राजनीतिक दल का चुनाव करने से पहले उन्हें भरपूर आज़माती है। ऐसा ही एक जाँचा और परखा गया राजनीतिक दल है जनसंघ । जिसकी पहचान आज की तारीख में भारतीय जनता पार्टी के रूप में होती है। वही राजनीतिक दल जिसकी पहचान किसी ज़माने में ‘दिया और बाती’ चिन्ह से होती थी। जनसंघ के तीन संस्थापक सदस्य थे- श्यामा प्रसाद मुखर्जी, प्रोफेसर बलराज मधोक और दीनदयाल उपाध्याय। इस पार्टी का चुनाव चिह्न दीपक था। साल 1951 में आज ही के दिन, यानी 21 अक्टूबर को जनसंघ की स्थापना हुई थी। जनसंघ का राजनीतिक इतिहास हो या युद्ध के दौरान निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका, नेताओं से लेकर कार्यकर्ता तक सभी ने अपने हिस्से की ज़िम्मेदारी भरपूर निभाई। 1951 में स्थापना के बाद ऐसा दौर जब देश में केवल 4 राष्ट्रीय राजनीतिक दल थे, देश के पहले चुनाव हुए और जनसंघ को 3 सीटें हासिल हुई। एक बात सुनिश्चित हुई कि देश में एक ऐसा राजनीतिक दल है जिसकी प्रस्तावना राष्ट्रवाद है। 1957 में देश के दूसरे लोकसभा चुनाव हुए और नतीजे आने पर दो विशेष बातें हुई, पहला जनसंघ को पिछली बार से 1 सीट ज्यादा हासिल हुई और स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार सांसद चुने गए। तीसरे और चौथे लोकसभा चुनावों में जनसंघ का प्रदर्शन अप्रत्याशित था, 1962 के लोकसभा चुनावों में जनसंघ को 14 सीट हासिल हुई और 1967 के चुनावों में 35 सीटें।इसके बाद जनसंघ को हासिल होने वाले परिणामों की सूरत बेहतर ही हुई। फिर आया आपातकाल का दौर। आपातकाल के बाद 1977 में हुए छठे लोकसभा चुनावों में जनसंघ ने जनता पार्टी के साथ मिल कर चुनाव लड़ा। जनता पार्टी को कुल 295 सीट हासिल हुई और कांग्रेस’ को करारी हार का सामना करना पड़ा। देश के राजनीतिक इतिहास में राजनीतिक दलों की कमी नहीं है लेकिन याद चर्चा और स्मरण उनका ही किया जाता है जिन्होंने जनता को निराश नहीं किया हो। 1980 के लोकसभा चुनावों में जनता पार्टी की हार के बाद, जनसंघ के अंतिम दो अध्यक्षों, आडवाणी और वाजपेयी ने जनसंघ को पुनर्जीवित करने के लिए कदम उठाए; लेकिन इस बार नये समूह का नाम भारतीय जनता पार्टी रखा गया।1980 में पार्टी की स्थापना के बाद अटल बिहारी वाजपेयी इसके पहले अध्यक्ष बने। बाद में वह भारत के प्रधान मंत्री बने, और उस पद पर सेवा करने वाले अब तक के एकमात्र भाजपा अध्यक्ष थे। वर्तमान जनसंघ आज की भाजपा ही है।

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