राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत विश्वविद्यालयों / कॉलेजों के पाठ्यक्रमों में डॉ. अम्बेडकर को लगाया जाए

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नई दिल्ली, फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस ( शिक्षक संगठन ) की योजना है कि इस वर्ष देशभर में बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की 133 वीं जयंती को बड़े धूमधाम से मनाने का संकल्प लिया है । हर साल उनकी जयंती समारोह मनाने के बाद युवा पीढ़ी में कोई संदेश नहीं जा रहा है । इसलिए फोरम ने उनके संदेश व संकल्प को लेकर 14 अप्रैल 2024 से उनकी जयंती के अवसर पर केंद्रीय विश्वविद्यालयों के विजिटर , शिक्षा मंत्रालय और यूजीसी चेयरमैन को पत्र लिखकर मांग की है कि देशभर के सभी केंद्रीय, राज्य व मानद विश्वविद्यालयों में सामाजिक क्रांति के अग्रदूत , शिक्षा शास्त्री अर्थशास्त्री , विधिवेत्ता , पत्रकार व आधुनिक भारत के निर्माता बोधिसत्व बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर के नाम पर अम्बेडकर चेयर स्थापित करने व अम्बेडकर स्टरडीज सेंटर खोलने की मांग का प्रस्ताव भेजा है । इस मांग को लेकर फोरम अन्य विश्वविद्यालयों में कार्यक्रम भी करेगा । दिल्ली विश्वविद्यालय ,जामिया मिल्लिया इस्लामिया ,इग्नू और राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय आदि किसी भी विश्वविद्यालय में अम्बेडकर चेयर नहीं है। साथ ही इन विश्वविद्यालयों में अम्बेडकर स्टरडीज सेंटर खोलने के साथ–साथ अम्बेडकर को विश्वविद्यालय के विभागों / कॉलेजों के पाठ्यक्रमों में लगाने की भी मांग की है ताकि आज की युवा पीढ़ी डॉ. अम्बेडकर के विषय में जान सकें । साथ ही उनका यह भी कहना है कि डॉ.अम्बेडकर के कई आयाम है जिस पर आज के शोधार्थियों को शोध करना चाहिए , उनका पत्रकारिता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान रहा है उनके इस रूप को सामने लाना चाहिए ।
फोरम के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन ने विश्वविद्यालयों के विजिटर को लिखे पत्र में यह भी मांग की है कि वे केंद्रीय शिक्षामंत्री और यूजीसी के चेयरमैन को डॉ. अम्बेडकर चेयर स्थापित करने व डॉ. अम्बेडकर स्टरडीज सेंटर खोलने संबंधी सभी केंद्रीय, राज्य व मानद विश्वविद्यालयों के उप कुलपति /कुलसचिव को एक सर्कुलर जारी कर यह निर्देश दिए जारी किए जाए कि वे अपने यहाँ डॉ. अम्बेडकर चेयर व डॉ. अम्बेडकर स्टरडीज सेंटर खोले। उन्होंने स्टरडीज सेंटर व अम्बेडकर चेयर के लिए केंद्र सरकार से यूजीसी को इसके लिए अतिरिक्त ग्रांट भी उपलब्ध कराने की मांग की है। साथ ही इन विश्वविद्यालयों में डॉ. अम्बेडकर से संबंधित विषयों पर शोध कार्य हो ( रिसर्च वर्क ) जो देश की युवा पीढ़ी के लिए व विश्वविद्यालयों के लिए लाभदायक सिद्ध हो।
चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन ने विजिटर,केंद्रीय शिक्षा मंत्री और यूजीसी के चेयरमैन को लिखे पत्र में उन्हें यह भी बताया है कि बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर जी ने सदैव वंचित, शोषितों और पिछड़े वर्गों के हकों की लड़ाई लड़ी थी, आज उनके योगदान को आम लोगों तक पहुंचाने की महती आवश्यकता है , इसके लिए आवश्यक है कि सभी केंद्रीय, राज्य व मानद विश्वविद्यालयों में डॉ. अम्बेडकर चेयर स्थापित हो और अम्बेडकर स्टरडीज सेंटर खोले जाए जिसमें विशेष रूप में डॉ.अम्बेडकर पर अनुसंधान कराया जाए। उन्होंने आगे बताया कि डॉ. अम्बेडकर अर्थशास्त्री ,विधिवेत्ता के साथ-साथ खोजी पत्रकारिता के क्षेत्र में एक स्थापित पत्रकार थे जिन्होंने अपने जीवन में 35 वर्षो तक बिना किसी वित्तीय सहायता के समाचार पत्र निकाले।
डॉ. सुमन ने बताया है कि डॉ. अम्बेडकर द्वारा निकाले गए मुकनायक को 31 जनवरी 2020 को 100 साल पूरे होने पर देशभर के पत्रकारिता विश्वविद्यालयों/ संस्थानों में शताब्दी वर्ष मनाया गया था । इन विश्वविद्यालयों में डॉ. अम्बेडकर की पत्रकारिता पर सेमिनार हुए , हिंदी, अंग्रेजी व अन्य भारतीय भाषाओं में मुकनायक के 100 साल पूरे होने पर उन्होंने विशेषांक निकाले । इतना ही नहीं बल्कि जिन विश्वविद्यालयों में पत्रकारिता विभाग है वहाँ उनकी पत्रकारिता पर शोध कार्य कराए जा रहे हैं। इन शोध कार्यों के माध्यम से पता चलता है कि डॉ. अम्बेडकर की पैठ जहाँ अर्थशास्त्र, विधिवेत्ता ,शिक्षा के क्षेत्र में थीं वहीं पत्रकारिता पर भी उनका पूरा अधिकार था इसलिए उन्होंने पत्रकारिता का क्षेत्र अपनाया जिसमें वे सफल भी हुए । उन्होंने बताया कि जब भी दलित पत्रकारिता की चर्चा होती है उसमें सबसे पहले महात्मा ज्योतिबा फुले व डॉ.अम्बेडकर के योगदान को याद किया जाता है । उनका कहना है डॉ.अंबेडकर की पत्रकारिता पर अभी शोध कार्य होना बाकी है ।
डॉ. सुमन ने यूजीसी , शिक्षा मंत्रालय को लिखे पत्र में लिखा कि डॉ.अम्बेडकर के विचारों को केवल किसी विशेष समुदायों से नहीं बल्कि समग्रता में समझने की जरूरत है,उनके विचारों में ना केवल समाज के पिछड़े, वंचितों के अधिकारों की बात है बल्कि महिलाओं की मुक्ति का संघर्ष भी चलाया और वैश्विक पटल पर उनके अधिकारों के लिए विधेयक भी लेकर आए । उन्होंने आगे यह भी कहा कि भारत में वर्षो की गुलामी झेल रही महिलाओं को उन देशों से पहले अधिकार मिले जो लंबे समय से स्वतंत्र थे। भारत ही एक मात्र ऐसा देश था जहां डॉ.आंबेडकर के प्रयासों से महिलाओं को देश की आजादी के साथ ही अधिकार मिल गए थे। आज महिला संगठनों / शिक्षिकाओं को भी यह समझने की जरूरत है कि बाबा साहेब के विचारों को समाज में पहुंचाये और उनके योगदान और अध्ययन पर विशेष शोध व पाठ्यक्रमों में लगाया जाना चाहिए ताकि आज की युवा पीढ़ी उनके विषय में जानकर उसे आत्मसात कर सकें ।
विजिटर और केंद्रीय शिक्षामंत्री व यूजीसी को लिखे पत्र में डॉ. सुमन ने उन्हें बताया है कि डॉ. आंबेडकर किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं है बल्कि एक संस्था का नाम है जिन्होंने भारत का नाम केवल उपमहाद्वीप में नहीं बल्कि वैश्विक पटल पर स्थापित किया। उन्होंने बताया कि जब विदेशों में डॉ. आंबेडकर को पढ़ाया जा रहा है तो भारत के विश्वविद्यालयों में अम्बेडकर स्टरडीज सेंटर खोलकर क्यों न उनके विचारों को भारत के प्रत्येक नागरिक तक पहुंचाया जाये। साथ ही आज की युवा पीढ़ी को डॉ. आंबेडकर के विचारों के माध्यम से ही सही मार्ग पर लाया जा सकता है। साथ ही उन्होंने भारत के संविधान को भी पढ़ाया जाना चाहिए ताकि अपने मूल अधिकार व कर्तव्यों को जान ले। उन्होंने बताया है कि गत वर्ष देशभर के विश्वविद्यालयों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की गई थीं तो क्यों न राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत शैक्षिक सत्र–2024 – 25 से विश्ववविद्यालयों / कॉलेजों के पाठ्यक्रमों में अंबेडकर को पढ़ाया जाए ताकि आज की युवा पीढ़ी उनके विचारों व सिद्धान्तों को अपने जीवन में उतार सकें।

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