समालखा (सुधीर सलूजा/ सानिध्य टाइम्स)‘‘आत्ममंथन एक भीतर की यात्रा है। इसे केवल चंचल मन और बुद्धि के स्तर पर नहीं तय किया जा सकता। इसके लिए अपने अंदर आध्यात्मिक रूप में मंथन करने की जरूरत है।’’ यह उद्गार सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने 31 अक्तूबर से 3 नवंबर तक चलने वाले 78वें वार्षिक निरंकारी सन्त समागम के पहले दिन मानवता के नाम अपना पावन संदेश देते हुए व्यक्त किए।
सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज एवं आदरणीय निरंकारी राजपिता रमित जी की पावन छत्रछाया में आयोजित इस चार-दिवसीय संत समागम में पूरे भारतवर्ष एवं विदेशों से लाखों की संख्या में श्रद्धालु भक्त सम्मिलित होकर समागम का भरपूर आनंद प्राप्त कर रहे हैं।
सतगुरु माता जी ने आगे कहा कि हर मानव के अंदर और बाहर एक सत्य निवास करता है, जो स्थिर और शाश्वत है। इसी सत्य को पहले जानना होगा। जब मनुष्य को हर किसी के अंदर इस सत्य का दर्शन होगा तो फिर उसके मन में सबके प्रति प्रेम का भाव उत्पन्न होगा। वास्तव में परमात्मा ने मनुष्य को इस तरह ही बनाया है जिससे उसके मन में प्रेम भाव की प्राथमिकता हो, लेकिन अज्ञानता के कारण मनुष्य एक-दूसरे से नफ़रत करने के कारण ढूंढ लेता है।
अंत में सतगुरु माता जी ने पूरे संसार के लिए यही शुभ कामना की कि मनुष्य मानवता की राह पर चले, अंदर से खुद का सुधार करते चले जाएं ताकि सुधार का दायरा बढ़ते हुए पुरे संसार में सुधार हो सके जिससे संसार में अमन एवं भाईचारे का वातावरण स्थापित हो सके।
इससे पूर्व समागम स्थल पर आगमन होते ही सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज का स्वागत संत निरंकारी मण्डल के प्रधान श्रीमती राजकुमारी जी ने फूलों की माला पहनाकर और मण्डल की सचिव डाक्टर प्रवीण खुल्लर जी ने फूलों का गुलदस्ता भेंट करके किया जबकि आदरणीय निरंकारी राजपिता रमित जी का स्वागत संत निरंकारी मण्डल के सिनियर एक्जिक्युटिव मेंबर अशोक मनचंदा जी ने फूलों की माला पहनाकर और विदेश विभाग के मेंबर इंचार्ज श्री विनोद वोहरा जी ने फूलों का गुलदस्ता भेंट करके किया। तदोपरान्त इस दिव्य युगल को एक फूलों से सुसज्जित खुली पालकी में विराजमान कर एक भव्य शोभा यात्रा के रूप में समागम पंडाल के मध्य से मुख्य मंच तक ले जाया गया।
यहां पहुंचते ही सतगुरु माता जी एवं आदरणीय निरंकारी राजपिता जी का स्वागत निरंकारी इंस्टिटुयट ऑफ म्यूज़िक एण्ड आर्टस (एनआईएमए) के 2500 से भी अधिक छात्रों ने भरत नाट्यम एवं स्वागती गीत द्वारा किया। दिव्य युगल का सान्निध्य पाकर पंडाल में उपस्थित श्रद्धालु भक्तों की नयनों से आनंद की धाराएं बह रही थी। दिव्य युगल भी इन भक्तों को अपना पावन आशीर्वाद प्रदान कर रहे थे। दिव्यता का यह अनुपम नज़ारा प्रेमा भक्ति की अनुभूति से सराबोर था। विभिन्न संस्कृतियों के भक्त अपनी जाति, धर्म, भाषा को भुलाकर केवल प्रेमाभक्ति में सराबोर थे।
 
								 
								 
                 
                                     
                                     
                                     
                             
                                                        
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