दिल्ली, नवरात्र के प्रथम दिन श्रद्धालू काफी बड़ी संख्या में मंदिर पहुंच रहे हैं और पूजा कर हैं। ज्योतिष के अनुसार कलश स्थापना का शुभ मुर्हूत सुबह 7.26 से 11.44, दोपहर 1.10 से दोपहर 2.36 तक एवं अभिजीत मुर्हूत में दिन के 11.22 से दोपहर 12.08 बजे तक है।
नवरात्र एवं पितृपक्ष की संधिकाल को महालया कहा जाता है। इस दिन पितरों को जल एवं पिंडदान कर विदाई दी जाती है। पितरों की विदाई के साथ मातृ पक्ष शुरू होता है। इस दिन मां दुर्गा का आह्वान कर अगले दिन कलश स्थापना कर पूजा शुरू की जाती है। ज्योतिष बताते हैं कि महालया बंगाल में बहुत खास है। लेकिन यहां भी लोग महालया पर मां दुर्गा की पूजा करते हैं। महालया मां दुर्गा के आगमन का दिवस है। लोग पितरों को विदाई देकर माता का आह्वान कर पूजा की तैयारी में जुट जाते हैं। मान्यता है कि महालया के दिन से ही मूर्तिकार प्रतिमा का रंग-रोगन शुरू करते हैं। कुछ पूजा केंद्रों पर आंख को भी आकार दिया जाता है।
माँ दुर्गा का प्रथम स्वरूप माँ शैलपुत्री की पूजा पहले नवरात्रि के दिन की जाती है। इन्हें सौभाग्य और शांति की देवी माना जाता है। धन-धान्य, सौभाग्य एवं आरोग्य प्रदान करने वाली माँ शैलपुत्री का आशीर्वाद हम सब पर बना रहे इसलिए श्रद्धालू काफी बड़ी संख्या में मंदिर पहुंचकर पूजा करते हैं।
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
‘शारदीय नवरात्रि’ का पावन प्रथम दिवस शक्ति स्वरूपा माँ शैलपुत्री की वंदना को समर्पित है। देवी माँ भक्तों को मान-सम्मान और आरोग्यता के आशीर्वाद से अभिसिंचित करती हैं।
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