केशवकुंज में रंगा हरि जी की पुस्तकों का लोकार्पण

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नई दिल्ली (सुधीर सलूजा/ सानिध्य टाइम्स) प्रज्ञा प्रवाह प्रतिष्ठान केशवकुंज एवं किताबवाले के तत्त्वाधान में रंगा हरि जी की पुस्तकों का लोकार्पण किया। स्वागत वक्तव्य संजय वर्मा जी ने प्रस्तुत किया-उन्होंने दिल्ली अनुवाद आयाम की शुरुवात से लेकर अब तक की यात्रा एवं अनुभवों को सांझा किया।
अतिथियों का स्वागत प्रज्ञा प्रवाह दिल्ली और केरल के सहयोग से अनुवाद का कार्य किया ।
प्रज्ञा प्रवाह प्रतिष्ठान व पूर्व कुलपति ब्रज किशोर कुठियाला जी ने प्रज्ञा प्रवाह प्रतिष्ठान के उद्देश्य एवं दृष्टिकोण का परिचय देते हुए बताया कि यह एक मंच है, थिंक टैंक्स का नेटवर्क है, उदात्त हिंदुत्व का प्रतिपादक है, भारतीयता के तत्वों को आस्था के रूप में अपने जीवन में धारण करने की प्रेरणा स्रोत है, यह इस वैश्विक दृष्टि का नेतृत्व करता है, सत्य की खोज पर आधारित है, प्रचार- प्रसार,जन जागरण करना इसका कार्य है जो कार्य अध्ययन केंद्रों के माध्यम से पूर्ण किया जा रहा है जो शैक्षिक और बौद्धिक वर्ग द्वारा किया जा रहा है, हमारी भाषाओं में बौद्धिकता और ज्ञान, एकात्मकता झलकती है, ज्ञान का प्रवाह अन्य भाषा के लोगों तक हो सके इसके लिए अनुवाद का कार्य शुरू किया गया।
रंगा हरि एक मौलिक चिंतक हैं एवं संत हैं। उन्होंने नारद, द्रोपदी जैसे पात्रों को नई दृष्टि से प्रस्तुत किया है। उनके द्वारा लिखी अनुवादित चार पुस्तकों का विमोचन आज किया जा रहा है। बौद्धिक जगत में विमर्श को एक नई दिशा देने में यह पुस्तकें महत्वपूर्ण हैं।
जेएनयू की कुलपति प्रो शांतिश्री धुलीपुडी पंडित ने कहा कि रंगा हरि निरंतर प्रवाहित होने वाला ज्ञान राशि है, द्रौपदी पर लिखी पुस्तक अत्यंत रोचक है, पुस्तक में महाभारत के तथ्यों को उनके मौलिक स्वरूप में प्रस्तुत किया गया है, यह एक गतिशील ज्ञानकोश है, यह एक कालातीत रचना है, अमर कृति है, द्रौपदी पर आधारित पुस्तक भविष्य में एक उत्कृष्ट रचना साबित होगी। धार्मिक संस्कृति और अब्राहमिक संस्कृति में बहुत अन्तर है, सीता और द्रौपदी जैसे पात्रों की भारतीय मानस में इनका बड़ा स्थान है, हिन्दुत्व वे ऑफ लाइफ़ है मात्र एक धर्म नहीं।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कैबिनेट मंत्री श्री आशीष सूद ने कहा आज हम ऐसे प्रकाश स्तंभ को नमन कर रहे हैं जिन्होंने उत्तर से दक्षिण को जोड़ने का काम किया, कहानियां बदलती है, सच्चाई नहीं बदलती, यह बदलता दौर नैरेटिव गढ़ने का दौर है। उनकी रचनाओं में भारतीय चिंतन धारा का अदभुत स्वरूप देखने को मिलता है, ग्रंथों के जरिए अपने मूल्यों को प्रतिस्थापित किया जाता है, हम दिल्ली विश्वविद्यालय में साइंस ऑफ लिविंग विषय को पाठ्यक्रम के रूप लाने वाले हैं।
कार्यक्रम के विशिष्ट व्यक्ता माननीय सुरेश सोनी जी ने कहा
रंगा हरि जी का लेखन बहुत व्यापक है, अध्ययन की कोई सीमा नहीं होती, स्वयं स्वाध्याय करना और फिर प्रवचन करना, रंगा हरि जी के व्यक्तित्व पर यह बात सटीक लगती है कि बहता पानी और रमता जोगी कभी बैठता नहीं है, उनकी सदैव जिज्ञासु रहने वाली प्रवृत्ति थी, सदा सरल ह्रदय रहे, स्वभाव में प्रौढता नहीं आने दी, उनकी वैचारिक गहनता एवं विश्लेषणात्मक दृष्टि के परिणाम स्वरूप अद्भुत कृतियां बनी, महाभारत एक विशाल सागर है, भारतीय संस्कृति में निहित जो दो ग्रन्थ हैं उस प्रवाह को समग्रता के साथ हमारे सामने रखते हैं, आज की दुनिया में मौजूद सभी पात्र महाभारत में मौजूद हैं, रामायण मनोवृत्तियों पर आधारित है, मनोवैज्ञानिक दृष्टि पर आधारित महाभारत है, एक पात्र के रूप में राम संविधान के प्राणी हैं, कृष्ण संविधान के निर्माता है। महाभारत में युद्व के अंदर जब तक भीष्म सेनापति रहे युद्ध के नियमों का पालन हुआ, धर्म का पालन हुआ, द्रोण के बाद अधर्म शुरू हुआ, युद्ध में धार्मिक वृत्ति वाले पहले मरे, अधर्म का पोषण करने वाले बाद में। नवीन अध्येताओं के लिए युद्ध नीति की विशेषताएं और विश्लेषण महत्वपूर्ण है । इन तथ्यों को समाज के समक्ष वे उजागर करें।
रामायण में सर्वसामान्य समूह को एक मिशन देने का काम राम ने किया और रावण की सत्ता का विध्वंस किया यह हम सबको दिशा देने के लिए एक महत्वपूर्ण तथ्य है,समाज में बहुत से गलत नैरेटिव गढ़े गए हैं जो बहुत गहरे हैं उन्हें समूल नष्ट करने की जिम्मेदारी बहुत बड़ी और महत्वपूर्ण है। वही हेमवंती नंन्दन बहुगुणा विश्विद्यालय के नवनियुक्त कुलपति प्रो श्रीप्रकाश सिंह जी को सम्मनित किया गया। कार्यक्रम के अंत में पुस्तकों के प्रकाशक किताबवाले श्री प्रशांत जैन ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।

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