साल 1999 जिसे पूरे देश में कारगिल युद्ध के लिए जाना जाता है, इस युद्ध में कई वीरो ने प्राण न्यौछावर किए तो कईयों ने अपनी जान की परवाह किए बगैर साथियों की जान बचाने के लिए भारत मां के चरणों में कुर्बानी दे दी। ऐसे ही एक वीर, कारगिल की दुर्गम चोटियों पर दुश्मनों से लोहा ले रहा था जिसका नाम सदियों तक याद किया जाता रहेगा। जिसका 15 दिन पहले ही विवाह हुआ था। उम्र सिर्फ 19 साल। सरहद पर युद्ध की रणभेरी बज चुकी थी युद्धभूमि कारगिल मे सज चुकी थी और युद्ध के लिए रणबांकुरों को पुकार रही थी, इसी युद्ध में शामिल होने के लिए ग्रेनेडियर योगेंद्र यादव को भी आदेश हुआ। ग्रेनेडियर योगेंद्र यादव भी नई नवेली जीवनसंगिनी को छोड़कर सरहद के लिए रवाना हो चले।
जम्मू ट्रांजिट कैंप में पहुंचकर पता चला कि इनकी बटालियन द्रास सेक्टर में पहुंच चुकी है। जल्दी से योगेंद्र यादव अपनी बटालियन 18 ग्रेनेडियर्स में शामिल हो गए। इनकी बटालियन ने तोलोलिंग पहाड़ी के ऊपर द्रास सेक्टर में जो सैकेंड ग्लेशियर के नाम से जाना जाता है वहां 22 दिन तक लड़ाई लड़ी। जिसमे दो ऑफिसर, दो जूनियर कमीशन ऑफिसर और 21 जवानों ने शहादत दी, तब जाकर 12 जून 1999 को पहली सफलता के रूप में तोलोलिंग पहाड़ी पर विजय प्राप्त की। इसके बाद द्रास सेक्टर की सबसे ऊंची चोटी टाइगर हिल्स को कैप्चर करने का आदेश मिला इसके लिए एक कमांडो टुकड़ी का निर्माण किया गया। टुकड़ी में योगेंद्र यादव को उनकी 22 दिन की तोलोलिंग की लड़ाई के अंदर बनी पहचान की वजह से शामिल किया गया और उन्हें नंबर वन स्क्वायड नियुक्त किया गया।
इसके बाद बटालियन कमांडर कर्नल कुशाल ठाकुर ,योगेंद्र सिंह यादव, लेफ्टिनेंट बलवान सिंह, हवलदार मदन व सिपाही अनंतराम ने सबसे कठिन टाइगर हिल्स को दुश्मन से खाली कराने के लिए 2 जुलाई 1999 को मोर्चा संभाल लिया। 16500 फीट ऊंची टाइगर हिल्स पर पाकिस्तान के सैनिकों ने कब्जा कर रखा था। योगेंद्र सिंह यादव ने अपनी टीम के साथ टाइगर हिल्स पर चढ़ाई शुरू की, पहाड़ की सीधी चढ़ाई, बर्फीली चट्टाने, नुकीले पत्थरों में रस्सियों के सहारे योगेंद्र सिंह यादव ने 16400 फीट तक का सफर तो तय कर लिया, मंजिल महज 60 फीट शेष थी तभी दुश्मन ने ऊपर से फायरिंग शुरू कर दी। फायरिंग में 3 सैनिक शहीद हो चुके थे खुद योगेंद्र सिंह यादव को 3 गोलियां बाजू व जांघ में लग चुकी थी। एक ग्रेनेड से योगेंद्र सिंह यादव का घुटना जख्मी हो गया और दूसरे ग्रेनेड के टुकड़े से नाक और मुंह का हिस्सा कट गया, जिससे नज़र आना बंद हो गया। फिर भी देश के इस वीर सपूत ने हिम्मत नहीं हारी, शरीर खून से लथपथ था। गोली लगने के कारण योगेंद्र सिंह का बांया हाथ निष्क्रिय हो चुका था, फिर भी खून से लथपथ योगेंद्र यादव ने बेल्ट से बाएं हाथ को बांधकर कोहनी के बल पर सरकते हुए दुश्मन के बंकर तक पहुंचे और ग्रेनेड फेंककर दुश्मन का बंकर तबाह कर दिया। योगेंद्र सिंह यादव यहीं नहीं रुके उन्होंने दूसरे बंकर पर भी अंधाधुंध फायरिंग कर कई पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। योगेंद्र सिंह यादव को 6 गोलियां लग चुकी की, तभी एक पाकिस्तानी सैनिक ने उनके सीने पर गोली मारी। परंतु उनकी ऊपर वाली पॉकेट में एक पर्स रखा हुआ था और उस पर्स में 5-5 रुपए के सिक्के थे। गोली सिक्कों पर लगी और कुछ देर के लिए योगेंद्र यादव को लगा कि वह मर चुके हैं परंतु कुछ मिनट बाद पाकिस्तानी सैनिक उनकी एके-47 उठा कर चलने लगा और वह योगेंद्र सिंह यादव के पैर से टकराया तो उन्हें झटका लगा और उन्हें महसूस हुआ कि मैं जिंदा हूं। योगेंद्र सिंह यादव के पास एक हैंडग्रेनेड रखा था उन्होंने उस की पिन निकाल कर पाकिस्तानी सैनिक की जैकेट के हुड में डाल दिया और कुछ दूर जाने पर वह फट गया जिससे उस पाकिस्तानी सैनिक का सिर उड़ गया। योगेंद्र सिंह यादव का शरीर लगभग साथ छोड़ चुका था. वह बुरी तरह घायल हालत में मातृभूमि की गोद में थे। तब उन्होंने पाकिस्तानी कमांडर का मैसेज सुना कि टाइगर हिल्स के 500 फीट नीचे भारत की चौकी को निशाना बनाया जाने के लिए जा रहे थे, यह सुनते ही योगेंद्र सिंह यादव मरणासन्न होने के बाद भी चौकन्ने हो गए और उसी हालत में अपने साथियों को दुश्मन की प्लानिंग की सूचना देने के लिए चोटी से नीचे सरकना शुरु कर दिया। धीरे-धीरे सरकते हुए अपनी चौकी तक का रास्ता पार कर लिया। चौकी पर पहुंचने के बाद उन्होंने साथियों को दुश्मन के मंसूबों की सूचना देकर वह वहीं गिर पड़े। योगेंद्र सिंह यादव के उस संदेश से कई भारतीय सैनिकों की जान बच गई.उसी 3 /4 जुलाई 1999 रात सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव की टुकड़ी ने बिना किसी नुकसान के टाइगर हिल टॉप पर विजय प्राप्त कर ली और तिरंगा फहरा दिया। उधर योगेंद्र सिंह की हालत को देखकर उनके साथियों ने उन्हें शहीद मान लिया परंतु कोई चमत्कार ही था जो योगेंद्र सिंह यादव ने दुश्मनों का हौसला पस्त करने के बाद मौत को भी मात दे दी। इस अदम्य साहस के लिए 19 साल के इस वीर को देश के सबसे बड़े पदक परमवीर चक्र से नवाजा गया।
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