साल 1994, अक्टूबर की 7 तारीख थी और नवरात्र का दूसरा दिन। सर्दी अपने शबाब पर थी। जनरल सुनील कुमार राजदान कश्मीर के काजीगुंड इलाके में चाय की दुकान पर बैठे थे, तभी वहां का एक बाशिंदा मेजर जनरल के पास आया और गुहार लगाने लगा। वह गिड़गिड़ा रहा था ,घर की लड़की को बचाने की मिन्नतें कर रहा था। उसकी गुहार थी की लड़कियों को दहशतगर्द उठा कर ले गए हैं, उन्हें बचा लो। खबर तुरंत हेड क्वार्टर को दी गई और अगले दिन 8 अक्टूबर को पूरी प्लानिंग के साथ मेजर जनरल सुनील कुमार राजदान 20 जवानों के साथ सुबह 4:30 बजे दुश्मन की तरफ कूच कर गए।
फौजियों की टीम आम रास्ते से न जाते हुए दुर्गम पहाड़ियों और पगडंडियों से होते हुए करीब 25 किलोमीटर का खड़ी चढ़ाई का सफर तय करते हुए गांव तक पहुंची। मेजर जनरल सुनील कुमार राजदान ने 3 दिन से नवरात्र का व्रत रखा हुआ था, पेट में सिवाय पानी के कुछ नहीं था ,फिर भी वतन के वास्ते कड़कड़ाती सर्दी मे वह अपने मिशन के लिए आगे बढ़ रहे थे। लगातार 12 घंटे में 25 किलोमीटर सफर तय करने के बाद भी इनके हौसले बरकरार थे। यहां पहुंचने के बाद पता चला कि लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी गांव की लड़कियों को अपने साथ पहाड़ी पर ले गए हैं। 3 दिन से नवरात्र का व्रत कर रहे राजदान और उनकी टीम ने हार नहीं मानी, राजदान डेढ़ घंटे और चढ़ाई करके रात करीब 9:00 बजे उस गांव में पहुंचे। यहां एक संदिग्ध से पूछताछ के बाद राजदान को उस गांव का पता चल गया जहां आंतकी छिपे थे। 30 मिनट का सफर तय करके टीम उस गांव में पहुंच गई ।
कई घरों वाले गांव में आतंकियों को ढूंढ पाना इतना आसान नहीं था। वहां मेजर जनरल राजदान ने अपनी सूझबूझ का परिचय दिया और घी की खुशबू से उस घर का पता लगा लिया। क्योंकि राजदान साहब जानते थे कि कश्मीर के उस इलाके में घी का इस्तेमाल नहीं होता। मेजर जनरल ने बिना देर किए उस मकान को घेर लिया। आंतकी आधुनिक हथियारों से लैस थे उनके पास एके 47 के साथ ग्रेनेड व बारुद भी था।
रात के करीब 10:00 बजने को थे। 8 अक्टूबर को ही राजदान साहब का जन्मदिन था और यह वही समय था जब वह पैदा हुए थे, अपने जन्मदिन के दिन ही वह फर्ज के वास्ते दुश्मनों से लोहा लेने को तैयार थे। दोनों तरफ से फायरिंग शुरू हो गई, आंतकी मकान के अंदर छिपे होने का फायदा उठाकर सेना को निशाना बना रहे थे। मेजर जनरल राजदान की टीम ने तीन मंजिला मकान को घेर रखा था। राजधान साहब डटे रहे दहशतगर्दों से मुकाबला करते रहे। रात 10:00 बजे से सुबह 3:00 बजे तक ऑपरेशन चला और मेजर जनरल राजदान और उनकी टीम ने लश्कर-ए-तैयबा के 9 आतंकियों को मार गिराया और 14 लड़कियों को आजाद करा लिया। तभी एक घायल आंतकी ने मेजर साहब पर फायरिंग कर दी, गोली मेजर राजदान के पेट से होते हुए रीढ़ की हड्डी में जाकर धंस गई और राजदान साहब वहीं गिर गए लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी, उन्होंने सिर पर बंधे अपने कपड़े को पेट से बांधा और हेड क्वार्टर को पूरी खबर पहुंचाई। अपने जवानों को भेजकर पास के गांव से स्लाइन की एक बोतल मंगवाई रीढ़ की हड्डी टूटने से राजदान का शरीर भले ही काम ना कर रहा था परंतु दिमाग पूरी तरह से काम कर रहा था। मेजर जनरल राजदान ने खुद अपने हाथ से ड्रिप लगाई। डॉक्टर हैरान रह गए जब सुबह 11:00 बजे उनके पास पहुंचे। मेजर जनरल के 4 बड़े ऑपरेशन किए गए ,1 साल से ज्यादा वक्त वह हस्पताल में रहे। रीढ़ की हड्डी में गोली लगने के कारण इनके शरीर के निचले हिस्से में लकवा मार गया। अस्पताल से छुट्टी के बाद व्हीलचेयर पर आ गए। परंतु हार फिर भी नहीं मानी फिर सेना में गए और पहले ऐसे अधिकारी बने जिन्हें व्हील चेयर पर ब्रिगेडियर से मेजर जनरल प्रमोट किया गया और व्हीलचेयर पर रहते हुए वह काउंटर टेररिज्म के मुखिया रहे। उनके अदम्य साहस और बहादुरी पर भारत सरकार ने उन्हें कीर्ति चक्र से सम्मानित किया।
हमारा संकल्प है कि अपने शौर्य से राष्ट्र का अभिषेक करने तथा उसे उन्नति पथ पर निरंतर अग्रसर करने वाले रणबांकुरों का सम्मान किया जाए ताकि हमारी वर्तमान और आने वाली पीढ़ी उनसे तथा उनके मूल्यों से सहज प्रेरित हो तथा राष्ट्रधर्म निभाने के लिए समर्पित हो।
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