“भारत उधार का लोकतंत्र नहीं है — यह लोकतंत्र की जननी है, जिसकी जड़ें सदियों की विमर्श परंपरा में निहित हैं।”

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नई दिल्ली (सुधीर सलूजा/ सानिध्य टाइम्स) “विधायिकाएं मात्र ईंट और पत्थर की इमारतें नहीं हैं, वे जनता की आवाज़, आकांक्षाओं और लोकतांत्रिक भावना को मूर्त रूप देने वाली जीवंत संस्थाएं हैं।” यह बात लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला ने आज ऑल इंडिया स्पीकर्स कॉन्फ्रेंस 2025 के समापन सत्र को संबोधित करते हुए कही। यह दो दिवसीय सम्मेलन 24–25 अगस्त 2025 को ऐतिहासिक दिल्ली विधानसभा में आयोजित हुआ था।इस अवसर पर केंद्रीय आवास मंत्री श्री मनोहर लाल खट्टर; केंद्रीय संचार मंत्री श्री ज्योतिरादित्य एम. सिंधिया; दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती रेखा गुप्ता; दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष श्री विजेंद्र गुप्ता; दिल्ली विधानसभा उपाध्यक्ष श्री मोहन सिंह बिष्ट तथा लोक निर्माण विभाग मंत्री श्री परवेश साहिब सिंह उपस्थित थे। इसके अतिरिक्त, देश के विभिन्न राज्यों से विधानसभा और विधान परिषदों के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, विधायक एवं सचिव भी सम्मेलन में शामिल हुए।

इस अवसर पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म का अनावरण किया गया, जिसमें राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता, अभिनेता श्री अनुपम खेर द्वारा वॉयस ओवर किया गया था। इस फिल्म में श्री विट्ठलभाई पटेल के प्रेरणादायी जीवन और दिल्ली विधानसभा की ऐतिहासिक यात्रा को दर्शाया गया, जिसने भारतीय संसदीय लोकतंत्र को मज़बूत आधार प्रदान किया।

लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला ने केंद्रीय विधान सभा के प्रथम भारतीय अध्यक्ष श्री विट्ठलभाई पटेल को श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा कि 1925 में श्री विट्ठलभाई पटेल का निर्वाचन भारत के संसदीय इतिहास का निर्णायक क्षण था। उनकी निष्पक्षता, न्यायप्रियता और अडिगता ने लोकतांत्रिक जवाबदेही की नींव रखी, जो एक सदी बाद भी देशभर के अध्यक्षों को मार्गदर्शन देती है।

श्री बिरला ने याद दिलाया कि इस भवन में लाला लाजपत राय, मदन मोहन मालवीय, गोपाल कृष्ण गोखले और तेज बहादुर सप्रू जैसे नेताओं की आवाज़ें गूंजी थीं। उनके विमर्श और बलिदान ने इस सभा को भारतीय लोकतांत्रिक आकांक्षाओं का पवित्र स्थल बना दिया। उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सार्थक विमर्श और निर्भीक प्रतिनिधित्व भारतीय लोकतंत्र की नींव हैं, जिन्हें गरिमा और निष्पक्षता के साथ संरक्षित रखना अध्यक्षों की जिम्मेदारी है।

लोक सभा अध्यक्ष ने आगे कहा कि आज की विधायिकाओं को नागरिकों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए पारदर्शिता, जवाबदेही और दक्षता सुनिश्चित करनी चाहिए। स्वतंत्रता का अधिकार हमेशा जिम्मेदारी और संसदीय मर्यादा के साथ होना चाहिए।

केंद्रीय आवास मंत्री श्री मनोहर लाल खट्टर ने इस ऐतिहासिक विधानसभा के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि विट्ठलभाई पटेल का नेतृत्व निष्पक्षता और जवाबदेही के मूल्यों की स्थापना करता है, जो आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने कहा कि सरकारें बदल सकती हैं, परंतु अध्यक्षों का दायित्व सदन की गरिमा, मर्यादा और निष्पक्षता बनाए रखना सदा अपरिवर्तनीय है।

श्री खट्टर ने तकनीक, आईटी प्रणाली और कृत्रिम बुद्धिमत्ता की रूपांतरणकारी भूमिका पर भी बल दिया। हरियाणा से अपने अनुभव साझा करते हुए उन्होंने परिवार पहचान पत्र और सीएम विंडो जैसी पहलें बताईं, जिनसे पेंशन व कल्याणकारी योजनाएं सीधे नागरिकों तक पहुँचीं और समय व संसाधनों की बचत हुई। साथ ही, उन्होंने इसके दुरुपयोग के खतरे — विशेषकर साइबर अपराध — पर चेतावनी दी और तकनीक के जिम्मेदार उपयोग की अपील की। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र का सार पारदर्शिता, जवाबदेही और जनसेवा में निहित है, और विधायकों को आधुनिक उपकरणों को विवेकपूर्ण ढंग से अपनाना चाहिए।

केंद्रीय संचार मंत्री श्री ज्योतिरादित्य एम. सिंधिया ने भारत की लोकतांत्रिक यात्रा पर विचार रखते हुए कहा कि भारत “लोकतंत्र की जननी” है, जिसकी जड़ें उधार ली गई परंपराओं में नहीं, बल्कि सदियों के विमर्श और बलिदान में हैं। उन्होंने कहा कि इसी विधानसभा में स्वतंत्रता सेनानियों और महान नेताओं की आवाज़ें गूंजी थीं, जिन्होंने देश के संसदीय पथ को आकार दिया।

श्री सिंधिया ने जी20 द्वारा भारत के समावेशी लोकतांत्रिक मॉडल की सराहना का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत यह दिखाता है कि 1.4 अरब नागरिकों के स्तर पर भी शासन प्रभावी ढंग से चल सकता है।

श्री सिंधिया ने दिल्ली विधानसभा द्वारा नेशनल ई-विधान एप्लिकेशन (NeVA) और 500 किलोवाट सौर ऊर्जा संयंत्र जैसी पहलों की सराहना की और युवाओं से इस विरासत को 2047 के भारत के लक्ष्य तक जिम्मेदारी से आगे ले जाने का आह्वान किया।

सम्मेलन का समापन करते हुए दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष श्री विजेंद्र गुप्ता ने लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला के सतत मार्गदर्शन और सभी गणमान्य अतिथियों एवं प्रतिनिधियों का आभार व्यक्त किया।उन्होंने ने याद दिलाया कि श्री विट्ठलभाई पटेल की ऐतिहासिक घोषणा — “मैं सभी दलों का हूं” — सदन में निष्पक्षता और प्रत्येक आवाज़ के प्रति समान सम्मान का सिद्धांत स्थापित करता है।

श्री गुप्ता ने कहा कि सायमन कमीशन के विरुद्ध हुई बहसें, मदन मोहन मालवीय और गोपाल कृष्ण गोखले जैसे नेताओं के ओजस्वी वक्तव्य और महात्मा गांधी की उपस्थिति ने इस विधानसभा को भारत के लोकतांत्रिक संकल्प का जीवंत साक्ष्य बनाया है।

श्री गुप्ता ने राष्ट्रीय विधान सूचकांक की स्थापना का प्रस्ताव रखा। उन्होंने बताया कि इससे देशभर की विधानसभाएं और परिषदें एक-दूसरे से सीख सकेंगी, सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाकर सुधार ला सकेंगी और कानून निर्माण को और अधिक पारदर्शी, सहभागी और प्रभावी बना सकेंगी।उन्होंने आह्वान किया कि विधानसभाओं को जनता से और अधिक निकट लाने के लिए जन-केंद्रित अभियान, शैक्षिक पहल और सहभागी कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि विधानसभाओं को कभी भी केवल सत्ता के केंद्र के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि संवाद, जवाबदेही और विश्वास की जीवंत संस्थाओं के रूप में — सच्चे लोकतंत्र के मंदिरों के रूप में देखा जाना चाहिए।

समापन सत्र से पूर्व, लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष श्रीमती मीरा कुमार ने ऐतिहासिक शताब्दी समारोह को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि“आज लोकतंत्र जिस प्रकार फल-फूल रहा है और भविष्य में भी अवश्य फलेगा-फूलेगा, उसकी जड़ें सौ वर्ष पूर्व श्री विट्ठलभाई पटेल द्वारा बोए गए बीजों में निहित हैं, जिन्होंने 24 अगस्त को इस कठिन दायित्व को स्वीकार किया।”

श्रीमती मीरा कुमार ने आयोजकों के प्रति आभार प्रकट किया और विट्ठलभाई पटेल के अग्रणी सुधारों का उल्लेख किया जिनमें अध्यक्ष की निष्पक्षता सुनिश्चित करना, प्रश्नकाल को सशक्त करना, स्वतंत्र विधानसभा सचिवालय की स्थापना करना और पीठ की गरिमा को बनाए रखना शामिल था।

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की प्रथम महिला अध्यक्ष के रूप में अपने अनुभव साझा करते हुए उन्होंने गर्व से कहा कि आज अनेक कॉमनवेल्थ देश संसदीय परंपराओं में ब्रिटिश उदाहरणों की बजाय भारतीय उदाहरणों को मानते हैं, जो भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया की परिपक्वता और विश्वसनीयता का प्रमाण है।

श्रीमती मीरा कुमार ने यह भी कहा कि लोकतंत्र और जाति-प्रथा साथ नहीं चल सकते। लोकतंत्र समानता पर आधारित है — एक व्यक्ति, एक वोट — जबकि जाति असमानता और भेदभाव में निहित है। अमरबेल के रूपक का प्रयोग करते हुए उन्होंने चेतावनी दी कि जिस प्रकार वह वृक्ष को नष्ट कर देती है, उसी प्रकार जाति-प्रथा ने भी भारतीय समाज को कमज़ोर किया है।उन्होंने वसुधैव कुटुम्बकम् की सच्ची भावना के अनुपालन का आह्वान करते हुए विचार, वचन और कर्म में समानता की अपील की, ताकि लोकतंत्र सजीव और समावेशी बना रहे।

अपने काव्य “सपनों की साझेदारी” की पंक्तियों के साथ उन्होंने अपने उद्बोधन का समापन किया और सभी को स्वास्थ्य, सुख एवं एक न्यायपूर्ण, सुंदर और समावेशी भविष्य के निर्माण हेतु शुभकामनाएँ दीं।

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