श्रेष्ठ व्यक्ति की पहचान

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इंसान का जीवन तभी श्रेष्ठ बन सकता है। जब इंसान अपने अंदर की ऊर्जा को सही ढंग से देखने की अवस्था को खुद में स्थापित करें। धन ,संपत्ति, वैभव ,भाव, सुविधा दे सकता है, सुख नहीं। सुख पाने के लिए इंसान को अपने अंदर की ऊर्जा का सही निरूपण करने की जरूरत है। सकारात्मकता सुचारिता त्याग, तपस्या, ईमानदारी ,सेवा भाव ,समर्पण ,सहयोग की भावना सहकारिता, सहयोग ,विश्वास और भाईचारा जब इंसान के अंदर जीवन की अनुभूति बन जाती है, तब जीवन धन्य बन जाता है। इसके सिवाय इस जीवन का और कोई विशेष मूल्य नहीं है। धन से लोकप्रियता नहीं प्राप्त की जा सकती। लोकप्रियता तो कर्म की सकारात्मकता के आधार पर ,मानवीय भाव से सबके साथ सम्भाव का दृष्टिकोण ही ,लोगों में श्रेष्ठता को प्रदर्शित कर सकता है। इसके सिवाय इस दुनिया में इंसान के लिए और कोई दूसरा मार्ग नहीं है।
जिसके बल पर दूसरे के दिल में अपनी जगह को स्थापित कर सके। दूसरे के मन मिजाज में अपने कर्मों के बल पर प्रभाव छोड़ना ही सद ज्ञान है। जिसे हम अध्यात्म भी कह सकते हैं। आध्यात्मिक सोच का इंसान हमेशा दूसरे की भलाई की बात सोचता है और कल्याण की दृष्टि से सम्भाव का आचरण व्यवहार से स्थापित करता है। इंसान के जीवन की इस सकारात्मकता को ही लोकप्रियता के रूप में हम देख सकते हैं। हम जो आचरण करते हैं और हमारे आचरण से समाज और देश के लोगों का जो लाभ होता है। जो कल्याण की व्यवस्था परिलक्षित होती है। उसका जो प्रभाव पड़ता है। वही हमारे लिए लोकप्रियता का साधन बनता है। बस यही है कर्म फल। कर्म सकारात्मक होता है और अगर उसमें हमारा समर्पण सन्नहित होती है तो उसका प्रतिफल भी हमेशा सकारात्मक ही दिखाई देता है। इसीलिए हर इंसान को अपने कर्मों की चिंता करनी चाहिए। प्रतिफल की नहीं। हमारे कर्म हमारे प्रतिफल का ही द्योतक है। बहुत ऐसे कम अवसर हो सकते हैं, जब हमारे अच्छे कर्मों का प्रतिफल हमें नकारात्मक मिला हो। इसीलिए सन्मार्ग को ही श्रेष्ठ मार्ग के रूप में हम देख सकते हैं। जो जीवन में सकारात्मकता के आधार पर मन के अंदर संतोष की अवस्था को स्थापित करता है। वास्तव में यही जीवन का मूल रहस्य है। जिसकी प्राप्ति के लिए प्रयास करना ही व्यक्ति का मानवीय कर्तव्य होना चाहिए और अपने कर्म से दूसरो को प्रेरित करना। सकारात्मक मार्ग पर लोगों को पथ प्रदर्शित करना ही हमारे जीवन का मूल आधार होना चाहिए तभी जाकर दुनिया के हित और व्यक्तिगत संतोष की स्थापना संभव है। स्वार्थी मनुष्य समाज और देश के लिए कभी
अनुत्पादक नहीं बन सकता। देश और समाज की हर समस्याओं के मूल आधार में इंसानों के अंदर स्वार्थ ,लोभ और अवसरवाद का बढ़ना ही मूल समस्या के रूप में देखा जा सकता है। फकीरी में अमीरी का आनंद तभी मिलता है। जब इंसान खुद को पहचान लेता है अपने आप को जान लेता है । उसे स्थिति में धन आधारित सोच बहुत तुक्ष्य दिखाई देती है। सिर्फ और सिर्फ ज्ञान के आधार पर श्रेष्ठ के भाव पर सोच विकसित होती है और हर व्यक्ति चाहे वह संपन्न हो या सरल हो, बड़े पद पर हो या छोटे पद पर हो, धनवान हो या गरीब हो। सभी का मूल्यांकन उसके सकारात्मक कामों के आधार पर ही हो, ऐसा संपन्न व्यक्ति एहसास करता है।

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