एक बार त्रैता युग में अकाल पड़ गया था । उसी युग में एक कौशिक मुनि अपने बच्चों के साथ रहते थे । बच्चों का पेट न भरने के कारण मुनि अपने बच्चों को लेकर दूसरे राज्य में रोज़ी-रोटी के लिए जा रहे थे । रास्ते में बच्चों का पेट न भरने के कारण मुनि ने एक बच्चे को रास्ते में ही छोड़ दिया था ।
बच्चा रोते-रोते रात को एक पीपल के पेड़ के नीचे सो गया था तथा पीपल के पेड़ के नीचे रहने लगा था । तथा पीपल के पेड़ के फल खाकर बड़ा होने लगा था । तथा कठिन तपस्या करने लगा था । एक दिन ऋषि नारद वहाँ से जा रहे थे । नारद जी को उस बच्चे पर दया आ गयी तथा नारद जी ने उस बच्चे को पूरी शिक्षा दी थी । तथा विष्णु भगवान की पूजा का विधान बता दिया था । अब बालक भगवान विष्णु की तपस्या करने लगा था ।
एक दिन भगवान विष्णु ने आकर बालक को दर्शन दिये तथा विष्णु भगवान ने कहा कि हे बालक मैं आपकी तपस्या से प्रसन्न हूँ । आप कोई वरदान मांग लो । बालक ने विष्णु भगवान से सिर्फ भक्ति और योग मांग लिया था । अब बालक उस वरदान को पाकर पीपल के पेड़ के नीचे ही बहुत बड़ा तपस्वी और योगी हो गया था ।
एक दिन बालक ने नारद जी से पूछा कि हे प्रभु हमारे परिवार की यह हालत क्यों हुई है । मेरे पिता ने मुझे भूख के कारण छोड़ दिया था और आजकल वो कहाँ है । नारद जी ने कहा बेटा आपका यह हाल शनिदेव ने किया है । देखो आकाश में यह शनिदेव दिखाई दे रहा है । बालक ने शनिदेव को उग्र दृष्टि से देखा और शनि असहाय करने लगे ।
शनि का यह हाल देखकर नारद जी बहुत प्रसन्न हुए । नारद जी ने सभी देवताओं को शनि का यह हाल दिखाया था । शनि का यह हाल देखकर ब्रह्मा जी भी वहाँ आ गए थे । और बालक से कहा कि मैं ब्रह्मा हूँ आपने बहुत कठिन तप किया है । आपके परिवार की यह दुर्दशा शनि ने ही की है । आपने शनि को जीत लिया है । आपने पीपल के फल खाकर जीवंन जीया है । इसलिए आज से आपका नाम पिप्पलाद ऋषि के नाम जाना जाएगा । और आज से जो आपको याद करेगा उसके सात जन्म के पाप नष्ट हो जाएँगे । तथा पीपल की पूजा करने से आज के बाद शनि कभी कष्ट नहीं देगा ।
ब्रह्मा जी ने पिप्पलाद बालक को कहा कि अब आप इस शनि को आकाश में स्थापित कर दो । बालक ने शनि को ब्रामाण्ड में स्थापित कर दिया । तथा पिप्पलाद ऋषि ने शनि से यह वायदा लिया कि जो पीपल के वृक्ष की पूजा करेगा उसको आप कभी कष्ट नहीं दोगे । शनिदेव ने ब्रह्मा जी के सामने यह बायदा ऋषि पिप्पलाद को दिया था ।
उस दिन से यह परंपरा है जो ऋषि पिप्पलाद को याद करके शनिवार को पीपल के पेड़ की पूजा करता है उसको शनि की साढ़े साती , शनि की ढैया और शनि महादशा कष्ट कारी नहीं होती है । शनि की पूजा और व्रत एक वर्ष तक लगातार करनी चाहिए । शनि कों तिल और सरसों का तेल बहुत पसंद है इसलिए तेल का दान भी शनिवार को करना चाहिए । पूजा करने से तो दुष्ट मनुष्य भी प्रसन्न हो जाता है । तो फिर शनि क्यों नहीं प्रसन्न होगा ? इसलिए शनि की पूजा का विधान तो भगवान ब्रह्मा ने दिया है ।डॉ एच एस रावत ( आचार्य ज्योतिष )
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