नई दिल्ली (सुधीर सलूजा) श्रीमदभगवदगीता का प्रत्येक पाठक अपनी ऐसी धारणा बनाए कि मैं अर्जुन हूं और मुझ में पाप, अपराध, अकर्मण्यता, कर्तव्यहीनता, कायरता और दुर्बलता आदि जो भी दुर्गुण है उनको जीतने के लिए श्री कृष्ण भगवान मुझे ही उपदेश दे रहे हैं| महाराज मेरी ही आत्मा की अमर सत्ता को जगा रहे हैं | मेरे ही चैतन्य स्वरूप का वर्णन कर रहे हैं और आलस्य रहित होकर, समबुद्धि से स्वकर्तव्य कर्म करने को मुझे ही प्रेरित, उत्तेजित और उत्साहित करने में तत्पर है | श्री भगवान का मैं ही प्रिय शिष्य हूं, परम प्रिय भक्त हूं और श्रद्धालु श्रोता हूं| ऐसे उत्तम विचारों से गीता का पाठक भगवान की कृपा का पात्र बन जाता है और उसमें गीता का सार सहज से समाने लग जाता है |
श्रीमदभगवदगीता, मनुष्यों के ज्ञाननिधि में एक महामूल्य चिंतामणि रत्न है| साहित्य सागर में अमृत कुंभ है और विचारों के उद्यान में कल्पतरू है | सत्य पथ के प्रदर्शित करने के लिए, संसार भर में गीता एक अद्वितीय और अद्भुत ज्योति स्तंभ है|
श्रीमदभगवदगीता में सांख्य पातंजल और वेदांत का समन्वय है| इसमें ज्ञान, कर्म और भक्ति की अपूर्व एकता है| आशावाद का निराला निरूपण है| कर्तव्य कर्म का उच्चतर प्रोत्साहन है और भक्तिभाव का सर्वोत्तम प्रकार से वर्णन किया है| श्रीमदभगवदगीता आत्म ज्ञान की गंगा है| इसमें पाप, दोष की धूल को धो डालने के परम पावन उपाय बताए गए हैं |कर्म – धर्म का, बंध – मोक्ष का इसमें बड़ा उत्तम निर्णय किया गया है|
श्रीमदभगवदगीता में कर्मयोग की बड़ी महिमा है |कर्मों के फलों में आशा न लगाकर कर्तव्यबुद्धि से कर्म करना कर्मयोग है |कर्तव्यों को करते हुए मोह में, ममता में और लालसा में मग्न न हो जाना अनासक्ति हैं| अपने सारे कर्मों को, अपने ज्ञान – विज्ञान, तर्क – वितर्क और मतामतसहित, मन वचन, काया से श्रीभगवान की शरण में समर्पण कर देना, कर्तापन का अभिमान न करना और अपने आप सहित कर्ममात्र को विधाता की भक्ति की वेदी पर बलि बना देना भक्तिमय कर्मयोग है, यही सच्चा सन्यास है |
श्रीमदभगवदगीता को जीवन में बसाने से और कर्मों में ले आने से मनुष्य का व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक जीवन उन्नत होकर उसका यह लोक सुधर जाता है और साथ ही आत्मा परमात्मा का शुद्ध बोध हो जाने से उसकी जन्म बंध से मुक्ति भी हो जाती है|
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